यूं इठला कर जो कुछ बयां कर रहे हो जुबां खोलते नहीं और इश्क़-ए-इजहार कर रहे हो मनसूबे बदल गए हैं या खुमार-ए-इश्क़ चढ़ गए हो जो भी हो तुम खुद ही खुद से अदावत हो गए हो परिवशता में कल्ब हार बैठे या तसव्वुर में कहीं गुम हो गए हो तिलिस्म भी नाक़ाम रहेगी तुम इस कदर गुमराह हो गए हो कुछ हसीब जो तुम हो रहे हो या नसीब से खो रहे हो इबादत भी कर रहे हो और मयस्सर भी न हो रहे हो कल तक चौकसी में जो मिल रहे थे आज हया भी खो रहे हो बिना कैदखाने के ही तुम कफ़स में कैद हो रहे हो