“आखिर जानवर कौन है?” झटका हो या हो हलाल, खून का रंग तो आखिर रहेगा लाल, कही चिखें तो कही आहें, क्या उन्हें दर्द नहीं होता,क्या चलती नहीं उनकी सांसें? स्वाद भी एसा क्या? की जान भी अब छोटी लगे, खून पतला लगे और टंगडी मोटी लगे, देख कर यह खेल मौत का इंसानियत भी अब मौन है, खुदा भी पुछता है अब,कि आखिर जानवर कौन है? कि आखिर जानवर कौन है? जंजिरों मे जकडे,पिंजरों मे बंदे, अपने उनके भी है और अपनों से बिछडे, चाकू कि नोक के निचे कर रहे गुहार, चाकू कहां सुनता है,एक झटके मे गर्दन से पार, पर इंसान तो सुनता है, बस दुसरों का दिल फुंकते फुंकते अपना दिल गुमशुदा है, पल भर के स्वाद के लिये भूल गया कि क्या दया क्या खुदाई और क्या खुदा है, भाव लगते है लाशों पर,पुछते है लोग कि यह लाश क्या तोल है? वो खुंटे पे लटकी लाशें भी हस कर पुछती होगी, कि आखिर जानवर कौन है? कि आखिर जानवर कौन है? कुत्ता प्यारा लगा तो पुच्कारा, दुसरे का रंग भेद पसंद ना आया तो मारा, पक्षपात करते हो,फिर न्याय की बात करते हो, कैसे आइने मे खुद के अक्स से ऑखों मे ऑखें भरते हो? नस्ल नस्ल का फर्क करते हो,फिर जात पात के फर्क पे भाषण देते हो, बकरे को काट के,कुत्ते को घर का आधा राषण देते हो, देख के मैले दिलों को अब अक्स भी शर्म के मारे ओढ गया शोल है, और नंगी तस्वीर इंसान की पुछ रही है,कि आखिर जानवर कौन है? ... due to word shortage have to remove two stanzas. you can read full poem on my fb www.facebook.com/rdx.namit #animallove #animalsarenotfood #everylifematters #yq #yqbaba #poetry #hindipoetry