वो अबला हिरनी... See caption... जब मैं स्कूल में थी, तब स्कूल घर से बहुत दूर था और आज की तरह कोई बस या वैन नहीं थी। चल के जाना पडता था । आते - जाते सड़क पर एक लड़की नजर आती थी । उसकी उम्र लगभग २०,२२ वर्ष होगी, जो पुराना, मैला हुआ फ्रॉक, अजीब बाल, नंगे पैर और उसके मुंह के एक कोने से थोड़ी सी लार टपकती थी। उस उम्र में ऐसे लोगों से डर लगता था । लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान कायम रहती थी। बात नहीं करती थी कभी। आज भी याद आती है। मन में हमेशा एक प्रश्न आता था कि यह भोजन कहाँ से करती होगी , कौन देता होगा। फीर पता चला कि कोई फीमेल नर्तकी उसे रोज खाना देती हैं। कॉलेज शुरू हुआ और तब उसे थोड़ा भूल गयी थी, और एक दिन उसके गर्भवती होने की खबर पूरे गाँव में फैल गई।पेपर में छप गयी। मेरा तो मानो दिल बैठ गया। ५ साल उसे देखती थी तो मन में उसके लिये थोड़ी आस्था थी। लेकिन उसकी मानसिक स्थिति ये सब समझने की नहीं थी। कुछ संबंधित लोगों ने उसे वो कौन था ये पूछने का प्रयास जरुर कीया। लेकिन वो सिर्फ रस्तेपर आती-जाती ऑटो रीक्षा ही दिखा पाई। किसीको कुछ समझ नही आया। शायद उसे यह भी नहीं पता था कि उसके गर्भ में एक बच्चा है। पेट दिखाई देने पर ही लोगों को पता चला था। कौन होगा नराधाम जिसने उसके उस अवतार, मानसिक स्थिति की भी परवाह नहीं की। अगर प्रकृति ने अपना काम नहीं किया होता तो पता ही नहीं चलता। वह फिर कभी नहीं देखाई दी । लेकिन यह बताया गया कि उसकी डिलीवरी का मुश्किल काम मुंबई के कुछ प्रसूति विशेषज्ञों ने किया और बच्चे को ले गये। कुछ लोग ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? इतना क्रुर कोई कैसे हो सकता है... तब से लेकर आज तक रोज कुछ न कुछ सुनते आ रहे हैं। दिल्ली के निर्भया कांड ने कई दिन मानों जैसे निंद उड गयी थी । ऐसा लग रहा था कि देश का हर व्यक्ति दुखी होगा। यह आशा की गई थी कि इस प्रकार के अपराध कुछ हद तक कम हो जाएंगे। मगर क्या हुआ? उल्टा ऐसे अपराध बढ़ाते ही दिखाई दिये। आसीफा एक नन्ही कली, बहुत बुरी तरह से उसपर आत्याचार हूए। कहते है राजकारण और समाजकारण है उसके पिछे, उस गहराई में न जाना ही अच्छा है, लेकिन उस कमनसीब का इस सब से क्या नाता है ?? एक नन्ही कली न केवल तोड़ी गई, बल्कि बिखर भी गई। मुंबई शक्ति मिल कांड... क्या प्यार को गलती कहा जाए ?? यह स्वीकार करते हुए कि इस तरह के जगह उसे नहीं जाना चाहिए था, लेकिन उसका प्रेमी था जो उसे वहां ले गया .. एक पुरुष .. और लड़की पीड़ित हो गयी। भुगतना उसे ही पडा। दिल्ली में जिस लड़की का स्कूटर बंद पडा था, उसकी मदद करने के बहाने उसे प्रताड़ित किया गया और पेट्रोल डालकर जलाया गया. हाल ही में दिल्ली की निर्भया जैसा मामला अंधेरी में हुआ। अभी कुछ दिन पहले 15 साल की एक बच्ची को कोल्ड ड्रिंक से नशीला पदार्थ पिलाकर जनवरी से प्रताड़ित किया जा रहा था. मामले का खुलासा हुआ कि उसका वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था. 29 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कोई सोच भी सकता है उस की हालत। उसे जगह जगह ले जाया गया। लगातार नौ महिनों से उसपर आत्याचार किया गया। यदि उनमें से एक में सरल मानवता होती, तो वह मुक्त हो जाती। लड़कियों के माता-पिता कैसे सुरक्षित महसूस करेंगे। ऐसा कोई शहर या गांव नहीं है जहां महिलाओं पर अत्याचार न हो। 2-4 साल की लड़कियों से लेकर 70 साल की उम्र तक की खबरें आती रहती हैं। कुछ मामलें दबाए जाते है और कुछ शर्मिंदगी की वजह से दब जाते है ऐसे अनगिनत मामले होंगे । मुझे आश्चर्य है कि इन लोगों की मानसिकता क्या होगी, वे एक महिला द्वारा पैदा हुए हैं, उन्हें स्तनपान कराया जाता है और पालनपोषण कीया जाता है। एक बहन उसके साथ बड़ी हुई होगी। कुछ लोगों के घर में पत्नी होती है, यहां तक कि बेटी भी होगी उसकी। माँ, दादी, चाची, मौसी, बहन, शिक्षिका जैसी महिलाओं की संगति में पला-बढ़ा आदमी इतना हिंसक, क्रूर कैसे हो सकता है ...कुछ लोग लड़की के कपड़े, व्यवहार को दोष देते हैं। लेकिन हर कोई तंग कपड़ों में नहीं होता। और चाहे कुछ भी हो, कीसने पुरुषों को एक स्वतंत्र महिला पर अत्याचार करने का अधिकार दिया, जो सड़क पर चल रही थी, एक परिचित थी, एक दोस्त थी, एक रिश्ता था। यह कैसी मानसिकता होगी। इतना बुरा संस्कार किसी भी घर में देना संभव नहीं है। हालांकि कहा जाता है कि पुरुष महिला सौंदर्य की ओर आकर्षित होते हैं, लेकिन सब की सोच इतनी गंदी नहीं होती। फिर ऐसे लोग खुद पर काबू क्यों नहीं रख पाते। सभी पुरुषों में प्राकृतिक आकर्षण की भावना होती है। हालांकि, ऐसे कई पुरुष हैं जो महिलाओं का सम्मान, आदर और रक्षा करते हैं। क्या ऐसे गंदी मानसिकतावाले लोग कभी पीड़ित की शारीरिक और मानसिक स्थिति के बारे में सोचेंगे? कैसे वो जीवन भर दम घुटकर जियेगी। सड़क पर चलते समय किसी अजनबी द्वारा टक्कर मार दिए जाने पर महिलाएं गुस्सा हो जाती हैं। इतनी घिनौनी हरकत के साथ जीना आसान नहीं है। फिर कुछ लडकियां आत्मघात का रास्ता अपना लेती हैं। कुछ मानसिक रूप से बीमार हो जाती हैं। कुछ खुद को घरों मे बंद करके रखती हैं। कुछ परीवारों पर सामाजिक बहिष्कार किया जाता है । परिवार बिखर जाते हैं। दुनिया की निगाहें उन पर टिकी रहती हैं। और यह सब जबकि उनकी कुछ भी गलती नहीं होती । कानून तो है, लेकिन उसके कारण उस घोर अत्याचार के घिनौने कृत्य का बार-बार उहापोह होता है। और अगर किसी को सजा भी दी जाए तो भी उस लड़की या परीवारों के नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। वह पहले की तरह सहजता से नहीं रह पाते। उसके लिए ऐसी कठोर सजा की योजना होनी चाहिए जो सिर्फ सोचकर भी ऐसी गंदी मानसिकता वाले लोग काँप उठे। और ऐसा कुछ करने की हिम्मत ही ना हो। तभी कोई महिला या लडकी सुरक्षित होने की आशा की जा सकती हैं।