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एक लड़की का नौकरी तलाशना, और विधायक के नज़रों में आ

एक लड़की का नौकरी तलाशना,
और विधायक के नज़रों में आ जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

नौकरी के बदले बदलते ज़माने में,
एक बेटी की अस्मत लुट जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

लुटती अस्मत बचाने खातिर,
रखवालों के सामने गिर जाना ,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

न्याय मांगती पिता की आंखें,
न्याय के घर में ही मुंद जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

मुंदी हुई आँखों की तपिश में,
उस अबला का खुद ही जल जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

धर्म-युद्ध मे लड़ने वाले ,
एक-एक का नाश हो जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

न्याय शपथ को लेने वाले,
"रखवालों" का "रखैल" बन जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

न्याय दिलाने वाली जनता का,
जाति-धर्म में ही बँट जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

समाज के "दर्पण" कहाने वालों का,
यूँ सत्ता के "दर पर" झुक जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

पहली "निर्भया" फिर थी "गुड़िया" 
तीसरी जाने "कितनी" होंगी,
देखकर आंखें मूँदने वालों से,
इंसानियत का ख़फ़ा हो जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

इंतेज़ार रहेगा उस "शुभ" दिन का,
जिस दिन लोग ये बोलेंगे,
"हवन" वाले इस देश में बंधु
"हवस" का यूँ हावी हो जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

✍️शुभम सक्सेना 'शुभ' महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

एक लड़की का नौकरी तलाशना,
और विधायक के नज़रों में आ जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

नौकरी के बदले बदलते ज़माने में,
एक बेटी की अस्मत लुट जाना,
एक लड़की का नौकरी तलाशना,
और विधायक के नज़रों में आ जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

नौकरी के बदले बदलते ज़माने में,
एक बेटी की अस्मत लुट जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

लुटती अस्मत बचाने खातिर,
रखवालों के सामने गिर जाना ,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

न्याय मांगती पिता की आंखें,
न्याय के घर में ही मुंद जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

मुंदी हुई आँखों की तपिश में,
उस अबला का खुद ही जल जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

धर्म-युद्ध मे लड़ने वाले ,
एक-एक का नाश हो जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

न्याय शपथ को लेने वाले,
"रखवालों" का "रखैल" बन जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

न्याय दिलाने वाली जनता का,
जाति-धर्म में ही बँट जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

समाज के "दर्पण" कहाने वालों का,
यूँ सत्ता के "दर पर" झुक जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

पहली "निर्भया" फिर थी "गुड़िया" 
तीसरी जाने "कितनी" होंगी,
देखकर आंखें मूँदने वालों से,
इंसानियत का ख़फ़ा हो जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

इंतेज़ार रहेगा उस "शुभ" दिन का,
जिस दिन लोग ये बोलेंगे,
"हवन" वाले इस देश में बंधु
"हवस" का यूँ हावी हो जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

✍️शुभम सक्सेना 'शुभ' महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

एक लड़की का नौकरी तलाशना,
और विधायक के नज़रों में आ जाना,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था....

नौकरी के बदले बदलते ज़माने में,
एक बेटी की अस्मत लुट जाना,