"चुभती आँखो से गिरवी रखकर , सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........ बढता घटता चाँद संजोकर, पलकों पर क्यूँ रोका है.....?? बढती नौका घटता जीवन , प्रेम नहीं सब धोखा है .......!! किसनें कैसे किस बंधन से, मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? " #ओम 'मलंग' #"चुभती आँखो से गिरवी रखकर , सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........ बढता घटता चाँद संजोकर, पलकों पर क्यूँ रोका है.....?? बढती नौका घटता जीवन , प्रेम नहीं सब धोखा है .......!! किसनें कैसे किस बंधन से, मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? "