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"चुभती आँखो से गिरवी रखकर , सक्त ह्रदय से धूमिल हो

"चुभती आँखो से गिरवी रखकर ,
सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........
बढता घटता चाँद संजोकर,
पलकों पर क्यूँ रोका है.....??
बढती नौका घटता जीवन ,
प्रेम नहीं  सब धोखा है .......!!
किसनें कैसे किस बंधन से,
मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? "
#ओम 'मलंग' #"चुभती आँखो से गिरवी रखकर ,
सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........
बढता घटता चाँद संजोकर,
पलकों पर क्यूँ रोका है.....??
बढती नौका घटता जीवन ,
प्रेम नहीं  सब धोखा है .......!!
किसनें कैसे किस बंधन से,
मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? "
"चुभती आँखो से गिरवी रखकर ,
सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........
बढता घटता चाँद संजोकर,
पलकों पर क्यूँ रोका है.....??
बढती नौका घटता जीवन ,
प्रेम नहीं  सब धोखा है .......!!
किसनें कैसे किस बंधन से,
मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? "
#ओम 'मलंग' #"चुभती आँखो से गिरवी रखकर ,
सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........
बढता घटता चाँद संजोकर,
पलकों पर क्यूँ रोका है.....??
बढती नौका घटता जीवन ,
प्रेम नहीं  सब धोखा है .......!!
किसनें कैसे किस बंधन से,
मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? "

#"चुभती आँखो से गिरवी रखकर , सक्त ह्रदय से धूमिल होकर........ बढता घटता चाँद संजोकर, पलकों पर क्यूँ रोका है.....?? बढती नौका घटता जीवन , प्रेम नहीं सब धोखा है .......!! किसनें कैसे किस बंधन से, मुक्त किया य़ा जोडा है.....,?? " #ओम