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एक पेड़ के नीचे एक भिखारी लेटा हुआ था कोढ़ होने के क

एक पेड़ के नीचे एक भिखारी लेटा हुआ था कोढ़ होने के कारण उसके शरीर पर जगह जगह घाव बने हुए थे जिन पर बहुत सारी मक्खीयां भिनभिना रहीं थीं आने जाने वाले उससे बचकर ही निकल रहें थें उस पेड़ के नीचे उसके अलावा कोई और नहीं था की तभी एक कोमल हृदय का व्यक्ति वहां से गुजर रहा था पर जब उसने देखा की एक कोढ़ी पेड़ के नीचे लेटा हुआ है व उस पर बहुत सारी मक्खीयां बैठी हैं और बहुत सारी उस पर भिनभिना भी रहीं हैं दया भाव के चलतें उसने उस कोढ़ी पर बैठी व भिनभिना रही मक्खीयो को अपने परनें से उड़ा दिया और उस पर अपने परने से ही हवा करने लगा दयावश पर यह क्या उस कोढ़ी ने उठतें ही गुस्से से तमतमाते हुए पूछा की मेरे शरीर से मक्खीयां किसने उड़ाई यह कहतें हुए उसका पूरा शरीर बुरी तरहा से कांप रहा था व एक सास में ही ना जाने कितने अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहा है वह राहगीर भी जिसने उसके शरीर पर से मक्खीयों को उडाया था हैरान परेशान था की यह कोढ़ी ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है...? पर कुछ सोचकर उसने बड़ी विन्रमता से कहा की भाई आप परेशान ना हो आपके ऊपर जो यह मक्खीयां बैठी थी उसे मैने उड़ाया है वह आपको परेशान कर रही थीं इतना सुनना था की कोढ़ी ने उस राहगीर को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया थप्पड़ की आवाज इतनी जोरदार थी की राहगीर के साथ अन्य वहा से गुजरने वालो को भी साफ साफ सुनाई दी राहगीर सदमे मे था की यह क्या हुआ ..?


उस राहगीर के साथ साथ सभी हैरान परेशान हो गयें थें तभी एक सज्जन पुरुष ने आगें बढ़ कर उस कोढ़ी से पूछा जो अभी भी राहगीर को गंदी गंदी गालियां बक रहा था इतना ही बीच बीच में वह उसे मारने के लियें भी दौड़ रहा था पर राहगीर चुप था वह मन ही मन सोच रहा था की क्या यहीं है आज के जमाने में भलाई करने का सिला ...तुमने इसे थप्पड़ क्यों मारा इसने तो तुम्हारी मदद की थी तुम्हारे ऊपर जो मक्खीयां बैठी थी वह तुम्हें नोच रही थीं तुम्हें खा रहीं थीं इसने उसे उड़ा कर तुम पर उपकार किया हवा की तुम्हारे जख्मों पर ताकि तुम्हें कुछ राहत मिले पर तुमने तो उसे सी थप्पड़ मार दिया क्या यही इंसानियत हैं तुम्हारी.... इतना सुनना था की कोढ़ी अपने आपे से बाहर हो गया उसने चीखतें हुए कहा चुप हो जाओ सालों इसने मुझ पर कोई उपकार नहीं किया है उल्टा मेरा नुकसान ही किया है ...सभी भौचक्के रह गयें थें की वह कोढ़ी क्या कह रहा है हैरान परेशान हो गयें थें गुस्से से कोढ़ी को मारने के लिये आगे बढ़ते उस राहगीर ने कहा वह कैसे तब तक भीड़ में से कुछ लोगों ने उसे रोक लिया था ...कोढ़ी बोला साले यह जो मक्खीयां मेरे ऊपर बैठी हुई थी वह आज से नहीं अनेकों वर्षों से बैठी हुई थी और अब उनका पेट भर चुका था वह सिर्फ बैठी ही मेरे ऊपर मुझे खा या नोच नहीं रहीं थीं और तूने उनको उड़ा दिया अब जो दूसरी नई मक्खीयां आयेगीं वह भूखी होगीं जो मुझ पर बैठेगीं नहीं वरन मुझे नोचेगीं खायेगी मुझे और नोचेगीं और कितना नोचेगीं यह सोच सोच कर परेशान हो रहा हूँ और बुड़बुड़ाते हुए वह कोढ़ी वहा से चला गया किसी ने उसे रोकने की भी कोशिश नहीं की बस सबके के दिमाग में यहीं बात चल रहीं थी वह अब मुझे खायेगीं..



©Lalit  Bhasod अब यह मुझें खायेगीं

#OneSeason
एक पेड़ के नीचे एक भिखारी लेटा हुआ था कोढ़ होने के कारण उसके शरीर पर जगह जगह घाव बने हुए थे जिन पर बहुत सारी मक्खीयां भिनभिना रहीं थीं आने जाने वाले उससे बचकर ही निकल रहें थें उस पेड़ के नीचे उसके अलावा कोई और नहीं था की तभी एक कोमल हृदय का व्यक्ति वहां से गुजर रहा था पर जब उसने देखा की एक कोढ़ी पेड़ के नीचे लेटा हुआ है व उस पर बहुत सारी मक्खीयां बैठी हैं और बहुत सारी उस पर भिनभिना भी रहीं हैं दया भाव के चलतें उसने उस कोढ़ी पर बैठी व भिनभिना रही मक्खीयो को अपने परनें से उड़ा दिया और उस पर अपने परने से ही हवा करने लगा दयावश पर यह क्या उस कोढ़ी ने उठतें ही गुस्से से तमतमाते हुए पूछा की मेरे शरीर से मक्खीयां किसने उड़ाई यह कहतें हुए उसका पूरा शरीर बुरी तरहा से कांप रहा था व एक सास में ही ना जाने कितने अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहा है वह राहगीर भी जिसने उसके शरीर पर से मक्खीयों को उडाया था हैरान परेशान था की यह कोढ़ी ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है...? पर कुछ सोचकर उसने बड़ी विन्रमता से कहा की भाई आप परेशान ना हो आपके ऊपर जो यह मक्खीयां बैठी थी उसे मैने उड़ाया है वह आपको परेशान कर रही थीं इतना सुनना था की कोढ़ी ने उस राहगीर को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया थप्पड़ की आवाज इतनी जोरदार थी की राहगीर के साथ अन्य वहा से गुजरने वालो को भी साफ साफ सुनाई दी राहगीर सदमे मे था की यह क्या हुआ ..?


उस राहगीर के साथ साथ सभी हैरान परेशान हो गयें थें तभी एक सज्जन पुरुष ने आगें बढ़ कर उस कोढ़ी से पूछा जो अभी भी राहगीर को गंदी गंदी गालियां बक रहा था इतना ही बीच बीच में वह उसे मारने के लियें भी दौड़ रहा था पर राहगीर चुप था वह मन ही मन सोच रहा था की क्या यहीं है आज के जमाने में भलाई करने का सिला ...तुमने इसे थप्पड़ क्यों मारा इसने तो तुम्हारी मदद की थी तुम्हारे ऊपर जो मक्खीयां बैठी थी वह तुम्हें नोच रही थीं तुम्हें खा रहीं थीं इसने उसे उड़ा कर तुम पर उपकार किया हवा की तुम्हारे जख्मों पर ताकि तुम्हें कुछ राहत मिले पर तुमने तो उसे सी थप्पड़ मार दिया क्या यही इंसानियत हैं तुम्हारी.... इतना सुनना था की कोढ़ी अपने आपे से बाहर हो गया उसने चीखतें हुए कहा चुप हो जाओ सालों इसने मुझ पर कोई उपकार नहीं किया है उल्टा मेरा नुकसान ही किया है ...सभी भौचक्के रह गयें थें की वह कोढ़ी क्या कह रहा है हैरान परेशान हो गयें थें गुस्से से कोढ़ी को मारने के लिये आगे बढ़ते उस राहगीर ने कहा वह कैसे तब तक भीड़ में से कुछ लोगों ने उसे रोक लिया था ...कोढ़ी बोला साले यह जो मक्खीयां मेरे ऊपर बैठी हुई थी वह आज से नहीं अनेकों वर्षों से बैठी हुई थी और अब उनका पेट भर चुका था वह सिर्फ बैठी ही मेरे ऊपर मुझे खा या नोच नहीं रहीं थीं और तूने उनको उड़ा दिया अब जो दूसरी नई मक्खीयां आयेगीं वह भूखी होगीं जो मुझ पर बैठेगीं नहीं वरन मुझे नोचेगीं खायेगी मुझे और नोचेगीं और कितना नोचेगीं यह सोच सोच कर परेशान हो रहा हूँ और बुड़बुड़ाते हुए वह कोढ़ी वहा से चला गया किसी ने उसे रोकने की भी कोशिश नहीं की बस सबके के दिमाग में यहीं बात चल रहीं थी वह अब मुझे खायेगीं..



©Lalit  Bhasod अब यह मुझें खायेगीं

#OneSeason