Nojoto: Largest Storytelling Platform

घर पहुंचते पहुंचते अबेर हो जाता है और, संग थकावट क

घर पहुंचते पहुंचते
अबेर हो जाता है और,
संग थकावट के
तलब आराम की।
कहीं ना कहीं
होता एक कोना
बिन हवा,बिन उजाला
परिस्थिति दब जाती है
कानों कान हाल नहीं पहुँचता
दीवारों के कण तो होते हैं परंतु,
बिन कान के !
 घर की चेष्टा नहीं करनी पड़ती।।

घर हमारा ही होता है लेकिन यहाँ तक पहुँचना भी हमारे लिए मुश्किल हो जाता है, क्योंकि घर  पर हमारा शरीर तो पहुँच जाता है, मन बाहर ही भटकता रहता है।
#घरपहुँचते #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi #विप्रणु #yqdidi #life #poetry
घर पहुंचते पहुंचते
अबेर हो जाता है और,
संग थकावट के
तलब आराम की।
कहीं ना कहीं
होता एक कोना
बिन हवा,बिन उजाला
परिस्थिति दब जाती है
कानों कान हाल नहीं पहुँचता
दीवारों के कण तो होते हैं परंतु,
बिन कान के !
 घर की चेष्टा नहीं करनी पड़ती।।

घर हमारा ही होता है लेकिन यहाँ तक पहुँचना भी हमारे लिए मुश्किल हो जाता है, क्योंकि घर  पर हमारा शरीर तो पहुँच जाता है, मन बाहर ही भटकता रहता है।
#घरपहुँचते #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi #विप्रणु #yqdidi #life #poetry