मंजिल को पाना है तो जख्मों को सहना होगा कठिनाइयों से निपटना है तो वक्त थोड़ा देना होगा खुली हुई है शेर कि मांद फिर भी आगे बढ़ना होगा समंदर गहरा है तो क्या हुआ फिर भी हौसला से पार करना होगा आंधियों को चीरने के लिए तूफानों से लड़ना होगा ठान ले गर आगे बढ़ना तो मुकद्दर भी तेरा होगा मंजिल को पाना है तो जख्मो को सहना होगा::