के सौदा हुए है चांद से नींद का, अब रातों में जगना नहीं पढ़ता। जो ले गए थे नींद हमारी, अब उनकी यादें भी पूछ के अति हैं, हमें झगड़ना नहीं पड़ता फिर वो कोशिश करते हैं हमारे सपनों में आने की, पर जनाब हमारे सपने बड़े बेगैरत हैं ये हमारी भी कहां सुनते है। चलो दिया मौका उन्हें सपनों में भी आने का, पर अफसोस हमारे सपने उनसे ज़यादा खूबसूरत निकले। ~शुभम मनचंदा सौदा नींद का। by - shubham manchanda