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ज़िन्दगी की दौड़ में, तजुरबा कच्चा ही रह गया...I ह

ज़िन्दगी की दौड़ में,
तजुरबा कच्चा ही रह गया...I
हम सीख न पाये "फ़रेब '
और दील बच्चा ही रह गया...I
बचपन में जहाँचाहा हंस लेते थे,
जहाँ चाहा रो लेते थे.।
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आँसुओं को तन्हाई..।
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से
देखा है आज ख़ुद को कुछ पुरानी तस्वीरों मैं
चलो मुस्कुराने की वजह ढुढते है
तुम हमें ढूंढो, हम तुम्हें डँढते है..

©R.y
  #ज़िन्दगी_की_दौड़_में