तर्ज जीवन गीत की,तुम प्रेम का अध्याय हो व्याकुल मन की आस्था, तुम रोम में समाये हो तुमसे हूं मैं प्रेयसी तुम कृष्ण मंदिर के मेरे तुम आत्मा से लीन हो ,जीवन का तुम पर्याय हो तुम गंध हो मैं देह हूं तुम ही मुझमें श्वास हो तुम सृजन मैं शब्द हूं, तुम मेरा अभिप्राय हो मैं हूं धरा तुम हो गगन, मैं हूं लता तुम पुष्प हो तुम बिन मैं अर्धसत्य हूं, तुम मुझको मुझसे मिलाए हो तुम अधर मैं बांसुरी ,मैं हूं धुन तुम राग सम तुम हृदय का नृत्य हो नस नस में तुम मुस्काए हो आदी हूं मैं, तुम अंत हो,अविरल हो तुम अनन्त हो मैं हूं 'सखी' एक गोपिका तुम मेरे कंजलोचनाये हो।#Sakhi.. ©Ankita Saxena