मन अनसूलझे मेरे मन के धागे, कशमकश किए जाए तिन तिन मै सुलझाने जाऊं, उलझ उलझ से जाए कभी लगे है फागुन सा मन, कभी पतझड़ बरसाए रहे कभी मन खिला खिला सा, कभी रहे कुमलाए अनसूलझे ये ताने - बाने संग बैठ कोई सुलझाए अनसूलझे मेरे मन के धागे, कशमकश किए जाए Love#emotions#poetry#nojotopoetry#pain#story#noidapoet#delhipoets# https://www.facebook.com/sahastrar/#