"गुस्ताख़ी मुआफ" गुस्ताख़ी मुआफ ,पूछना था, मैं कभी तुम्हारे सपनों में आता हूं क्या ? निश्चल प्रेम तुम्हारे मन का, मैं सचमुच हृदय से तुमको भाता हूं क्या ? तुम कह दो सच या बिल्कुल झूठ , ग़लत फहमी है ये पागल दिल की। पर सच मानो, कुछ दिन से रोज़ दिखाई देती है तुम सी एक लड़की। ले सको अगर ,कुछ अनचाहे दिल के निर्णय, तो खिचड़ी पक सकती है। उमड़ रहे प्यासे दिल के दरिया, बहते झरनों की खिड़की खुल सकती है। ©Anuj Ray #गुस्ताखी मुआफ