हर इंसान के अंदर दो इंसान होते हैं एक सही और एक गलत ऐसे विचारों वाले अरमान होते हैं कब कौन सा रूप आ जाए वो नही जानता तामसी प्रवृत्ति का हो गया है मानव अब खुद को ही नही पहचानता मानव कँहा है ये अब भला दानव हो गया है कल तक तो पशुओं के शरीर का गोश्त खाता था आजकल स्त्री के शरीर को नोंचता खरोंचता है सात्विकता से दूर हुआ है जब से अबोध बालिका को भी कँहा ये छोड़ता है मानव होके मानवता को शर्मसार कर रहा है कुदरत भला क्या बिगाड़ेगी तेरा तू तो खुद ही खुद का विनाश कर रहा है हैरान हूँ थोड़ा सा परेशान हूँ आज का मानव क्या सोचता है अपराध को क्यों मजहबी रंग दे तौलता है धरा को खून से रंगने की साजिश करने वालों दंगा पीड़ितों से पूछ आज भी उनका वो दर्द आँखों से बोलता है......... #अंजान..... हर इंसान के अंदर दो इंसान होते हैं एक सही और एक गलत ऐसे विचारों वाले अरमान होते हैं कब कौन सा रूप आ जाए वो नही जानता तामसी प्रवृत्ति का हो गया है मानव अब खुद को ही नही पहचानता मानव कँहा है ये अब भला दानव हो गया है कल तक तो पशुओं के शरीर का गोश्त खाता था