किरण लोभ है बढ़ रहा सब के भीतर, सो भ्रष्टाचार है बढ़ रहा सब के भीतर, चंद पैसों की ख़ातिर लोग बेच रहे ईमान, देश बेच रहे चंद पैसों की ख़ातिर, मैं ये देखता हूँ ; रोज़ हरघड़ी, लोग लूटते हैं अपनों को हीं चंद पैसों की ख़ातिर, आदमीं के भीतर ; अब आदमियत रही कहाँ, लालच के दलदल में डूबते हैं चंद पैसों की ख़ातिर, लोभ है बढ़ रहा सब के भीतर, सो भ्रष्टाचार है बढ़ रहा सब के भीतर, चंद पैसों की ख़ातिर लोग बेच रहे ईमान, देश बेच रहे चंद पैसों की ख़ातिर #कविमनीष #NojotoQuote #कविमनीष