मांझी तेरी कश्ती के तलबगार बहुत हैं कुछ इस पार तो कुछ उस पार बहुत है जिस शहर में खोली है तूने शीशे की दुकान सुना है उस शहर में पत्थर के खरीदार बहुत है शानदार शायरी