रात की बात तुमको बतायें भी क्यों,जबकी ताने सुनाने का मन ही नहीं । अन्न गोदाम में और है भुखमरी,क्योंकि खाने खिलाने का मन ही नहीं। दर्द को है छिपाती हँसी होठ की, दास्तानें सुनाने का मन ही नहीं। बोलो कैसे निभे साथ मेरा तेरा,रुठने और मनाने का मन ही नहीं।