रिश्ता तो नहीं है कोई तुमसे , फिर भी बहुत खास हो तुम दूर तो बहुत हो,फिर भी आस पास हो तुम क्यों की बहुत खास हो तुम। राख के ढेर में छुपी हुई आग हो तुम काटी ना जा सके अकेले दिसंबर की वो सर्द रात हो तुम क्यों की बहुत खास हो तुम।। ज़िन्दगी में जगह नहीं है तुम्हारी फिर भी दिल में रहते हो एक आवाज़ आती है अंदर से कि निकाल क्यों नहीं देते है तुम्हे पर क्या करे ,सब से छुपा कर रखा है जिसे वो राज हो तुम क्यों की बहुत खास हो तुम।। मिटा कर भी जो मिट ना सके मेरे खयालों का वो अंजाम हो तुम बरसो गुजार दिए जिसे भुलाने में पर भूल ना सके जिसे वही याद हो तुम शायद इसी लिए खास हो तुम।। हवाओं में घुलती हुई खुशबू,समन्दर में आया लहरों का सैलाब हो तुम मेरे लिए भेजा हुआ खुदा का एक पैग़ाम हो तुम इसीलिए बहुत खास हो तुम दूर होकर भी आस पास हो तुम क्यों की बहुत खास हो तुम।। रिश्ता तो नहीं है कोई तुमसे , फिर भी बहुत खास हो तुम दूर तो बहुत हो,फिर भी आस पास हो तुम क्यों की बहुत खास हो तुम। राख के ढेर में छुपी हुई आग हो तुम काटी ना जा सके अकेले दिसंबर की वो सर्द रात हो तुम क्यों की बहुत खास हो तुम।।