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सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं, हम व्यर्थ ढकोशला क्यों

सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं,
हम व्यर्थ ढकोशला क्यों करते हैं।
हैं नियत-नियति का प्रतिफल ये-
न जाने जमाना ढोंग क्यों रचती है।

©pawan kumar suman
  # सुख -दुःख

# सुख -दुःख #शायरी

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