White ख़ुद से कितनी दूर निकल आये हम , ख़ुद की तलाश मे, भटक रहे हैं मृग मरिचिका से, एक अनबुझी सी प्यास में, रेगिस्तान सा सफ़र हैं, आँखों में यादो की रेत चुभती हैं, पाँव लड़खड़ा जाते हैं मेरे , मग़र तलाश नहीं रूकती है, बेसबब सी जिंदगी हैं, बेवजह की बंदिशों से घिरी हुई, अरमान दफन हैं सारे , और सभी ख्वाहिशें हैं मरी हुई, चलना भी अनवरत हैं, और ख़ुद को गिरने से बचाना है, कोई तो पड़ाव होगा, जहां ख़ुद से कुछ वक़्त बिताना है, सम्भव हैं कि कोई साथ न दे, मंज़िल तक अकेले ही जाना है, जाना हैं उस आख़िरी सफ़र पर, और शून्य हो जाना हैं।। -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #ख़ुदसेकितनीदूर #पूनमकीकलमसे #नोजोटोहिन्दी अदनासा- कविताएं