भोजन के सात्विक होने पर जोर देने का मुख्य कारण, यही था कि हमारे शास्त्र कहते है जैसा खावै अन्न! वैसा पाबै मन्न। अपना अपना नज़रिया है! कहके वास्तविकता को, छुपाया तो जा सकता है,मिटाया नही। जैसी दृष्टि वैसा दर्शन। देवी "अनुसुइया" ने अपने हाथ में जल लिया और त्रिदेव पर डाला! तीनों के तीनों छः माह के बालक बनगए उनकी पत्नी ढूंढती फिरें। शक्ति,सरस्वती,और लक्ष्मी जब विद्या अध्ययन कर अपने विषय में पारंगत हो गयीं तो उनको लगा कि सृष्टि में तीनों देवों के अलावा अब उनकी टक्कर का कोई नही जिसने इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त की हो और मनमाना आचरण करने लगीं। पत्नियों के मुह कौन लगे तीनों को ही मेडल दे दिया कि तुमसा कोई नही है इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बन गई हो। तभी नारद जी से ख़बर मिली कि "अनुसुइया" का व्यवहार अपने पति के साथ आज की तारीख़ में शानदार है। अब एक स्त्री दूसरी की तारीफ़ कहाँ झेल पाती है। 😁😝😝💕☕ तीनों की तीनों अड़ गयीं और पत्नियों की जिद्द से तो सब परिचित हैं ही तीनों देव मजबूरन चल दिये अनुसुइया जी के आश्रम में। ऋषि आत्रेय घर पे थे नही और दरवाज़े पर अपरिचित अतिथि खड़े थे। अनुसुइया ने उनका स्वागत किया जलपान कराया और आने का कारण पूछा। तीनों देव अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए शास्त्रार्थ करने लगे। देवी अनुसुइया के उत्तर सुनकर तीनों को स्वयं बचकाना हरकत करते से दिखाई दिए तो क्षमा माँग वहीं ज्ञानार्जन करने रुक गए। कई दिन व्यतीत हो गए तो तीनों देवियों को चिंता हुई ढूंढते ढूंढते अनुसुइया के आश्रम में पहुँची और देखा कि उनके पति देव तो बच्चों की भाँति देवी अनुसुइया से विद्याध्ययन कर रहे हैं। अब उनकी हिम्मत नज़र मिलाने की भी नही हो रही थी।तब देवी अनुसुइया ने तीनों को माता की तरह आदेश दे उनकी पत्नियों के साथ जाने को कहा और परस्पर प्रेम से रहने के लिए कह विदा किया।😁😁💕☕☕🙏🙏🙏 : वैदिक युग में स्त्री शिक्षा की इस कहानी को मनोरंजन तक सीमित रखने के लिए... पानी के छींटे मरवा कर तीनों देवताओं को बच्चा बना दिया गया और हमारे वास्तविक ज्ञान को उपहास का पात्र बना दिया। बोलो आपका विवेक क्या कहता है?