चलो, आज कुछ बचपन की बात करते हैं जो एक गुजरा कल बन गया पता नहीं वो खेल, वो मस्तियां वो कागज की जहाज, वो कंचियो का खेल आज वो शाम बन कर रह गया चलो,आज बचपन की बात करते हैं।। कहां मिलती है वो रोटियां जिसमे मां के प्यार की महक आती है अक्सर कभी भूखा ही सोना पड़ता है क्योंकि वो सूखी रोटी नसीब नहीं होती हैं पता है आज अकेले ही सोना पड़ता है नींद नहीं आती, फिर भी आंखे बंद कर लेते हैं पता नहीं आज बचपन की बात करते हैं जो मांगा था सबकुछ मिल गया पर इस जिंदगी की हेरा फेरी में मेरा बचपन, छीन गया वो किताबों को खुशबू भी अच्छी थी सायद किताबें पुरानी हो गई है हम भी पन्नों पर स्याही की तरह फैल गए चलो, बचपन की बात करते हैं "पंथ" हैं कुछ बचपन की यादें