बाक़ी हो जो भरम तोड़ जाऊंगी मैं एक दिन ये सफ़र छोड़ जाऊंगी मैं अपनी परवाज़ पर ज़ब्त कैसे करूं तंग आ के ये घर छोड़ जाऊंगी मैं जिस्म की साज की सारी आवाज की आख़िरी तार सब तोड़ जाऊंगी मैं पिंजरा सांसों का क़बतक करेगा,यू क़ैद एक रोज़ रूह अपनी उड़ाऊंगी मै ज़िंदगी ये सफ़र छोड़ जाऊंगी मैं रुकने की जीने की वजहें सारी ख़त्म किस भरोसे पे,धोखे पे चलेंगे अब हम नाता मेरा मेरे ख़्वाबों से था मगर एक तरफ से क़दम कितने और चलते हम ये भरोसा की मुड़ के वो आवाज़ दे सब शिकवे शिकायत छोड़ जाऊंगी मैं ज़िंदगी ये सफ़र छोड़ जाऊंगी मैं...!!! मुझ को डर मौत से तो रहा भी नहीं अब ये चाहत,सफ़र छोड़ जाऊंगी मैं ज़िंदगी तेरा दर छोड़ जाऊंगी मैं..!! ©ashita pandey बेबाक़ #Thinking शायरी लव 'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द लव शायरी