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मैं अपनी जिन्दगी के दो पल सुकून से जीने दूर कहीं ऊ

मैं अपनी जिन्दगी के दो पल सुकून से जीने दूर कहीं ऊंची चोटी की तरफ चल दिया। 

दूर जहां तक नज़र गई, ऊंची - ऊंची चोटियों का पहाड़ । 

दूर - दूर तक जैसे कोई नज़र नहीं आ रहा, सिवाय मेरे। 

फिर जैसे ही मैंने अपने आस - पास अपनी नजरें घुमाई कहीं कुछ दिख जाए, सामने जैसे ही एक पत्थर का टिला नज़र आया। 
जैसे ही मैं उस पर चढकर दूर दूर तक कुछ देखने का प्रयास करने लगा। 
जब कुछ दिखा नहीं तो फिर मैंने जोर से एक आवाज़ लगाई ।
 मानो जैसे आवज़ चारों तरफ से लौटकर मेरे ही पास वापिस लौटकर आ रही थी। 
क्रमशः -

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