मझंते मझंते मंदिर मस्जिद इक इक मजार, सहम गई ये अंखिया और थम गए ये लफ्ज़ो के बाजार, ज़िन्दगी के आखरी छोर तक हमे है तेरा इंतज़ार, अब आस्मा से बर से चाहे शोले या फिर आँखों से आब, हम तो हो गए मुन्तशिर, तेरी याद में ये आंसू बहते है बार बार, ये ज़िन्दगी तेरी और सिर्फ तेरी यादो की है कर्जदार, अब चाहे तू हमे अपना कहे या ठुकरा दे बार बार. ✍️✍️✍️ "Written:- By @ Umesh kumar" #मुन्तशिर