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बिखरे पन्नों की तरह" डरता हूं कहने से मगर, द

बिखरे पन्नों की तरह"

डरता हूं कहने से मगर, दिल के जज्बात में 
अपने,रात रात भर जाग के लिखता हूं हर दिन।

क्या होगा मेरा हाल, सोच के घबराता हूं,
कहीं अगर तुम ना  समझीँ तो, जिऊंगा कैसे तुम बिन।

जैसे मेरे यह प्रेम पत्र, छठ के हैं घर में इधर-उधर,
बिखर जाएगा जीवन भी, बिखरे पन्नों की तरह।

©Anuj Ray # बिखरे पन्नों की तरह"
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Anuj Ray

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# बिखरे पन्नों की तरह" #कविता

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