#OpenPoetry मैंने भी उम्मीदे लगायी थी अपनी उम्मीदे किसी के सहारे जगायी थी मेरी मंजिल भी मुझ से दूर नहीं थी लेकिन लोगो ने मेरी हर बार एक नयी औकात दिखाई थी फिर भी आगे मैंने बढ़ने की कसम खायी थी पर क्या करू मेरे अंदर भी लाख बुराई थी हर किसी को अपनी इच्छाये बताई थी हर रोज कहता था उन लोगो से एक दिन अच्छा दिन आएगा मेरी हर एक तख़लीफ़ को मिटायेगा,मुझे वापस कर देगा मेरा समय सारा,पर पता न था वो समय भी कुछ अलग ही रंग दिखायेगा फिर भी कोशिश कर कर रुक जाता हुँ क्या पता कल का दिन मेरे लिए क्या खुशी लाएगा,जो आज मेरे लिए बोलने वाले हैं यह समय एक न एक दिन इन सब का मुँह बंद कराएगा. #OpenPoetry I m writing which feel's.....