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दोहा - प्रभाती ************** मधुकर गुंजन कर रहे,

दोहा - प्रभाती 
**************
मधुकर गुंजन कर रहे, चिड़िया करती शोर।
सारी   बगियां   झूमती,  नाचे मन का मोर ।।

सुमन  खिले  हैं बाग में, महक उठी हर ओर।
कली कली अब खिल गई, आई  सुंदर  भोर।।

उगता सूरज कह रहा, मानव उठ अब जाग।
कब तक सोयेगा बता, कार्य राह पर भाग।।

©Uma Vaishnav #दोहा 
#प्रभाती 

#sunrays
दोहा - प्रभाती 
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मधुकर गुंजन कर रहे, चिड़िया करती शोर।
सारी   बगियां   झूमती,  नाचे मन का मोर ।।

सुमन  खिले  हैं बाग में, महक उठी हर ओर।
कली कली अब खिल गई, आई  सुंदर  भोर।।

उगता सूरज कह रहा, मानव उठ अब जाग।
कब तक सोयेगा बता, कार्य राह पर भाग।।

©Uma Vaishnav #दोहा 
#प्रभाती 

#sunrays
umavaishnav1851

Uma Vaishnav

Bronze Star
Growing Creator
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