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कागज की कश्ती थी पानी का कैनारा था खेलने की मस्ती

कागज की कश्ती थी 
पानी का कैनारा था
खेलने की मस्ती थी 
दिल ये आवारा था 

वो पहला स्कूल वाला प्यार था
जब तुम मेरे पास थी
कॉलेज की दिनों में
तुम्ही तो सहारा थी 

ना जाने कहाँ चलेगये तुमने अचानक से
पल पल मुश्किलों से कट रही है
तेरी कमी मुझे बहत खल रही है
जुदाई की आग अंदर जल रही है
क्या तेरे अंदर भी यही बात पल रही है 

क्यू ना फिरसे एक नई सुरवात करते है
एकबार फिरसे मुलाक़ात करते है
फिरसे रिस्ते का एक नई न्योता जोड़ते है

©Ashis Das
  Bachpan ki yaaden  !
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