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इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है फूल होकर भी शू

इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है
फूल होकर भी शूलों में होती गिनती है
बाहर से पत्थर,भीतर से फूलो का शहर,
फिऱ भी सब कहते वो तो कठोर मति है

वो अपने सीने का दर्द हँसकर छिपाता है
ज़मानेवाले समझते वो हंसती जिंदगी है
इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है
पुरुष दरिया में होकर भी सूखी लकड़ी है

कोई भी शख्स उसको समझ न पाता है
वो उजाले में रहकर भी अंधेरा ही पाता है
वो अपनों के लिये पत्थर सा होकर भी,
जलता और पिघलता बनकर मोमबती है

इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है
आंख में नीर होकर भी सूखी जिंदगी है
कब तलक यूँ जीवन भूखा चलता रहेगा,
वो सबकुछ करके भी भूखा सोता रहेगा

माना सब कर चुप रहना उसकी प्रकृति है
पर बिन दिखावे न दिखती आज रोशनी है
पत्थर हृदय है वो पत्थर ही बना रहेगा,
अब न वो छिप-छिप अक्षु बहाता रहेगा,
वो पुरुष है,वो एक शमशीर है जुगनू की,
वो अब तम की निशा को मिटाता रहेगा

जो कोई भी अब उसका अपमान करेंगे,
अब सबसे वो गिन-गिन बदला रहेगा
पुरुष ख़ुदा की दी हुई एक मजबूत कड़ी है
वो नही कोई समय की एक टूटी घड़ी है
दिल से विजय पुरुषों की स्थिति
इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है
फूल होकर भी शूलों में होती गिनती है
बाहर से पत्थर,भीतर से फूलो का शहर,
फिऱ भी सब कहते वो तो कठोर मति है

वो अपने सीने का दर्द हँसकर छिपाता है
ज़मानेवाले समझते वो हंसती जिंदगी है
इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है
पुरुष दरिया में होकर भी सूखी लकड़ी है

कोई भी शख्स उसको समझ न पाता है
वो उजाले में रहकर भी अंधेरा ही पाता है
वो अपनों के लिये पत्थर सा होकर भी,
जलता और पिघलता बनकर मोमबती है

इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है
आंख में नीर होकर भी सूखी जिंदगी है
कब तलक यूँ जीवन भूखा चलता रहेगा,
वो सबकुछ करके भी भूखा सोता रहेगा

माना सब कर चुप रहना उसकी प्रकृति है
पर बिन दिखावे न दिखती आज रोशनी है
पत्थर हृदय है वो पत्थर ही बना रहेगा,
अब न वो छिप-छिप अक्षु बहाता रहेगा,
वो पुरुष है,वो एक शमशीर है जुगनू की,
वो अब तम की निशा को मिटाता रहेगा

जो कोई भी अब उसका अपमान करेंगे,
अब सबसे वो गिन-गिन बदला रहेगा
पुरुष ख़ुदा की दी हुई एक मजबूत कड़ी है
वो नही कोई समय की एक टूटी घड़ी है
दिल से विजय पुरुषों की स्थिति

पुरुषों की स्थिति #कविता