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ग़ज़ल मोहब्बत का सफ़र हमसे मुकम्मल ना हुआ , हिज्र मे

ग़ज़ल

मोहब्बत का सफ़र हमसे मुकम्मल ना हुआ ,
हिज्र में सिवाय ग़म के कुछ मयस्सर ना हुआ |

के अब सुख गया है दरिया - ए - चश्म भी मेरा ,
फ़िर कभी मैं तेरी याद में चश्म - ए - तर ना हुआ ।

वीरान ही पड़ा रहा ये दिल तेरे जाने के बाद 
फिर कभी किसी के लिए ये शहर ना हुआ ।

के ज़ेहन पुरज़ोर कोशिश में था तुझे भुलाने के लिए ,
फ़िर दिल ना माना तो ज़ेहन का कोई असर ना हुआ ।

यूँ तो तेरी वफ़ा पे कई ग़ज़लें लिख दी मैंने
लेकिन तेरी बेवफ़ाई पर मुझसे एक अशआर ना हुआ ।

मेरे लफ़्ज़ों में तासीर हमेशा नीम की ही रही ,
फ़क़त लहजा तल्ख़ होने से मैं कभी ज़हर ना हुआ । #ghazal #poem #mohabbat #hijra
ग़ज़ल

मोहब्बत का सफ़र हमसे मुकम्मल ना हुआ ,
हिज्र में सिवाय ग़म के कुछ मयस्सर ना हुआ |

के अब सुख गया है दरिया - ए - चश्म भी मेरा ,
फ़िर कभी मैं तेरी याद में चश्म - ए - तर ना हुआ ।

वीरान ही पड़ा रहा ये दिल तेरे जाने के बाद 
फिर कभी किसी के लिए ये शहर ना हुआ ।

के ज़ेहन पुरज़ोर कोशिश में था तुझे भुलाने के लिए ,
फ़िर दिल ना माना तो ज़ेहन का कोई असर ना हुआ ।

यूँ तो तेरी वफ़ा पे कई ग़ज़लें लिख दी मैंने
लेकिन तेरी बेवफ़ाई पर मुझसे एक अशआर ना हुआ ।

मेरे लफ़्ज़ों में तासीर हमेशा नीम की ही रही ,
फ़क़त लहजा तल्ख़ होने से मैं कभी ज़हर ना हुआ । #ghazal #poem #mohabbat #hijra