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मत करो मेरी प्रतीक्षा, मेरे अंदर नहीं बची अब कोई

मत करो मेरी प्रतीक्षा, 
मेरे अंदर नहीं बची अब कोई भी इक्षा 
मैं नहीं मिलूंगी किसी से अब 
देख लिया मैंने सब 
मत निकल पड़ना तुम दिवाकर में ही,
मत ढूंढना मुझे प्रभाकर में भी।
मैं नहीं मिलूंगी तुम्हें प्रातः,संध्या या रात्रि काल में,
नहीं फसुंगी अब किसी जाल में। 
अब ये तिमिर ही मुझे अच्छा लगने लगा, 
ये मुझे मेरी परछाई से भी दूर रखने लगा
समझ लिया मैंने अब सांसारिकता का ज्ञान, 
नहीं बचा मुझमें अब कोई भी अभिमान
वैमनस्य का भाव सब खत्म हुआ, 
अब वैराग्य का जन्म हुआ 
मैंने सांसारिकता से मुख मोड़ लिया है
मैंने अब वैराग्य धारण कर लिया है।

©Richa Dhar #Woman वैराग्य
मत करो मेरी प्रतीक्षा, 
मेरे अंदर नहीं बची अब कोई भी इक्षा 
मैं नहीं मिलूंगी किसी से अब 
देख लिया मैंने सब 
मत निकल पड़ना तुम दिवाकर में ही,
मत ढूंढना मुझे प्रभाकर में भी।
मैं नहीं मिलूंगी तुम्हें प्रातः,संध्या या रात्रि काल में,
नहीं फसुंगी अब किसी जाल में। 
अब ये तिमिर ही मुझे अच्छा लगने लगा, 
ये मुझे मेरी परछाई से भी दूर रखने लगा
समझ लिया मैंने अब सांसारिकता का ज्ञान, 
नहीं बचा मुझमें अब कोई भी अभिमान
वैमनस्य का भाव सब खत्म हुआ, 
अब वैराग्य का जन्म हुआ 
मैंने सांसारिकता से मुख मोड़ लिया है
मैंने अब वैराग्य धारण कर लिया है।

©Richa Dhar #Woman वैराग्य
richadhar9640

Richa Dhar

New Creator

#Woman वैराग्य #कविता