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मेरे आँखों के काले घेरे,चेहरे के सब रंग उड़ा कर,दफन

मेरे आँखों के काले घेरे,चेहरे के सब रंग उड़ा कर,दफन कई राज खोले,गहरे पड़े अंतर्मन में,विषादों के मेले।।
 तकलीफों की कालिखों से,पुते हैं ये काले घेरे,
दर्द की झीलों से,टपकती बुँदे गलों पे।।                     दिखने लगे हैं,ये कब्रिस्तान जैसे,
जहाँ पड़े हैं अनगिनत,सुखों की लाशें।।
नासमझ थकी हारी,नींद से बेगानी आँखे,अब सो जाना चाहती है,मेरी आँखे।। दर्द को व्याँ करती मेरी आंखे
मेरे आँखों के काले घेरे,चेहरे के सब रंग उड़ा कर,दफन कई राज खोले,गहरे पड़े अंतर्मन में,विषादों के मेले।।
 तकलीफों की कालिखों से,पुते हैं ये काले घेरे,
दर्द की झीलों से,टपकती बुँदे गलों पे।।                     दिखने लगे हैं,ये कब्रिस्तान जैसे,
जहाँ पड़े हैं अनगिनत,सुखों की लाशें।।
नासमझ थकी हारी,नींद से बेगानी आँखे,अब सो जाना चाहती है,मेरी आँखे।। दर्द को व्याँ करती मेरी आंखे
mukesh2846368106126

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