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एक भूखे ने उसे रोक दिया। उसने हाथ पसारकर कहा,"बाबू

एक भूखे ने उसे रोक दिया। उसने हाथ पसारकर कहा,"बाबू! कई दिन की भूख है, कुछ दे दो..."

अरूण सिहर उठा - यह है हिन्दुस्तान। 
इसी को बचाने के लिए इतना शोरगुल?उसके दिमाग में एक और बात आई। 
जो अपना पेट तक भरने के योग्य नहीं, उन्हें जीवित रहने का ही क्या अधिकार है? 

पैसा, पैसा है आजकल जो कुछ है;. जिसके पास पैसा नहीं, वह कुछ भी नहीं कर सकता। क्यों नहीं है इनके पास पैसा? बिना योग्यता के तो पैसा नहीं मिल सकता। फिर जीवित रहने का लाभ ही क्या ? 

दया और करूणा पर पलने वाला मनुष्य नहीं, कुत्ता है।
 उनको तो जो दो टुकड़े डाल दे, उसी के गुलाम हैं वह।


भिखारी ने फिर कहा, "बाबू, दया करो, तीन दिन से..."

#विषाद_मठ #coronavirus #विषाद_मठ #रांगेय_राघव
एक भूखे ने उसे रोक दिया। उसने हाथ पसारकर कहा,"बाबू! कई दिन की भूख है, कुछ दे दो..."

अरूण सिहर उठा - यह है हिन्दुस्तान। 
इसी को बचाने के लिए इतना शोरगुल?उसके दिमाग में एक और बात आई। 
जो अपना पेट तक भरने के योग्य नहीं, उन्हें जीवित रहने का ही क्या अधिकार है? 

पैसा, पैसा है आजकल जो कुछ है;. जिसके पास पैसा नहीं, वह कुछ भी नहीं कर सकता। क्यों नहीं है इनके पास पैसा? बिना योग्यता के तो पैसा नहीं मिल सकता। फिर जीवित रहने का लाभ ही क्या ? 

दया और करूणा पर पलने वाला मनुष्य नहीं, कुत्ता है।
 उनको तो जो दो टुकड़े डाल दे, उसी के गुलाम हैं वह।


भिखारी ने फिर कहा, "बाबू, दया करो, तीन दिन से..."

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