कभी उल्फ़त न थी हममें, सरल स्वच्छंद था जीवन। मोहब्ब़त इश्क़ की भाषा,समझता था न कोमल मन। मगर उनकी निगाहें - मुस्कुराहट थीं कयामत की, ये दिल डूबा उन्हीं में अब उन्हीं के वास्ते है तन। अरुण शुक्ल "अर्जुन" प्रयागराज संदीप सिंह राजावत