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पल्लव की डायरी इन बस्तियों पर इतराकर बुनियाद अपनी

पल्लव की डायरी
इन बस्तियों पर इतराकर
बुनियाद अपनी हिला रहे है
सँघर्षो के द्वार खोल
मानव के मूल्य गिरा रहे है
प्रतियोगिता हो जैसे हार जीत की
हक एक दूसरों के खा रहे है
दौड़ सब अंधी है
बिना सभ्यताओं के
वर्ना यूरोपीय देश कियो मात खा रहे है
आनन्द की खोज और शांती के लिये छटपटा रहे है
भोगो की दुनियाँ तिलस्मी है 
छटपटाना रह जाता है
मन विकृत होकर
 पागलपन की हद तक बढ़ जाता है
                                                       प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #Ambitions दौड़ सब अंधी है,बिना सभ्यताओं के
#nojotohindi

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