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बदल जा जरा ----------------------- ढूँढ झरोखा आशा

बदल जा जरा
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ढूँढ झरोखा आशा का,पल्लू छोड़ निराशा का ।।
उठा-पटक तो खेल के हिस्से,जो रण जीते,उन्ही के किस्से,
कभी साथ ना देना हताशा का,बन मित्र प्रेम-अभिलाषा का।।
समझ तनिक व्यायाम की कीमत,उठा लाभ शारीरिक भाषा का ,
करने पर ही,सब फल संभव-छोङ मोह भाग्य-प्रत्याशा का ।।
नये समय की नई चमक  मे, महत्व बङा जिज्ञासा सा ,
अब पहली वाली बात नहीं है,यह दौर है,इसरो/नासा का ।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  #alone संभल जा जरा

#alone संभल जा जरा #कविता

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