मैं अस्तित्व शक्ति का लीये शिव का तांडव रच रहा मैं रात के अंधेरे में मशाल सा हूं जल रहा मैं रात के अंधेरे में मशाल सा हूं जल रहा पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें मैं रात के अंधेरे में मशाल सा हूं जल रहा चांद को देख मैं हंसता हूं तू हर सुबह तो ढल रहा वो सूरज की जो गर्मी है बस शाम तक उसकी हस्ती है मैं चलता चला जाता हूं मेरा अंत है कहां