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जाने कैसा अंतहीन सफर है ये मेरा, कभी उस छोर पर उस

 जाने कैसा अंतहीन सफर है ये मेरा,
कभी उस छोर पर उसे गुजरता देखा, बिछड़ता देखा,
अब इस छोर पे मैं हूं, कुछ उन्ही लम्हों में ठहरा सा,
उसे गुजरता देखता हूं बचे हुए लम्हों की तरह,
जो न ठहरता हैं, ना ही पलटता हैं,
बस बहता रहता है किसी नदी की तरह...

©Chandrakant R Tiwari "राही"
  #lonelynight #भटकतेखयालऔरतुम