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लागय नैं मऽन हिनका जग के कोनो भवन मे लागय इ थान ओह

लागय नैं मऽन हिनका जग के कोनो भवन मे
लागय इ थान ओहिना चंदा जेना गगन मे

तरु बूढ़ एक कदम्बक संग गाछ नऽव पीपरक 
पूरब दिशा जे गामक निवास उग्रनाथक 

निष्ठा अछि अदौ सँ विश्वास जन-जन मे
डमरू के स्वर सुनय सब जे व्याप्त अछि पवन मे

गरमी मे इ तपय छथि बरसात मे भिजय छथि
दिन-राति ठंड मे उफ् थर-थर यौ इ कपय छथि 

तइयौ नैं कोनो चिन्ता रऽहय अपन मगन मे
होइछ कचोट बहुते बाबू इ हमरा मन मे

बाड़ी सँ भांग लायब मरीच दऽ कऽ पीसब 
बेलपात भरि डाला हम तोड़ि कऽ चढ़ायब 

होइछ सुगंध कतबा धथूर के सुमन मे
सब मंत्र अछि समाहित हर-हर बम-बम मे

त्रिशूल चंद्र डमरू सिर सँ बहय ये गंगा
गरदन मे कृष्ण विषधर गमछा नैं धोती अंगा

चंदन नैं भस्म लेपल हिनका सगर बदन मे
अपरूप रूप लागय मृगचर्म के वसन मे
                                                 🔱ललित रंग ✍🏻

©Lalit Mishra #उग्रनाथ 

#mahashivratri
लागय नैं मऽन हिनका जग के कोनो भवन मे
लागय इ थान ओहिना चंदा जेना गगन मे

तरु बूढ़ एक कदम्बक संग गाछ नऽव पीपरक 
पूरब दिशा जे गामक निवास उग्रनाथक 

निष्ठा अछि अदौ सँ विश्वास जन-जन मे
डमरू के स्वर सुनय सब जे व्याप्त अछि पवन मे

गरमी मे इ तपय छथि बरसात मे भिजय छथि
दिन-राति ठंड मे उफ् थर-थर यौ इ कपय छथि 

तइयौ नैं कोनो चिन्ता रऽहय अपन मगन मे
होइछ कचोट बहुते बाबू इ हमरा मन मे

बाड़ी सँ भांग लायब मरीच दऽ कऽ पीसब 
बेलपात भरि डाला हम तोड़ि कऽ चढ़ायब 

होइछ सुगंध कतबा धथूर के सुमन मे
सब मंत्र अछि समाहित हर-हर बम-बम मे

त्रिशूल चंद्र डमरू सिर सँ बहय ये गंगा
गरदन मे कृष्ण विषधर गमछा नैं धोती अंगा

चंदन नैं भस्म लेपल हिनका सगर बदन मे
अपरूप रूप लागय मृगचर्म के वसन मे
                                                 🔱ललित रंग ✍🏻

©Lalit Mishra #उग्रनाथ 

#mahashivratri