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टूटे टुकड़ों की आवाज़ अक्सर आती नहीं है। खामोशी एक

टूटे टुकड़ों की आवाज़ 
अक्सर आती नहीं है।

खामोशी एक स्त्री की
सबको भाती रही है।

वो अकेले ही हर,
रिश्ते को निभाती रही है।

हर एक को खुश,
इस कदर रखती है।

खुद के सपनों को,
वो सोच पाती नहीं है।

टूटे टुकड़ों की आवाज़ 
अक्सर आती नहीं है।

खामोशी एक स्त्री की
सबको भाती रही है।

©Gunja Agarwal
  Priyanka Modi Pramodini mohapatra Akhil Sharma