तेरी झुकी नज़र में क्या है? ये ज़रूरी नहीं के हर मर्तबा प्यार हो कभी ख़ुद को छुपाया, कभी मरे मन को, कभी दिल नासाज़ को कभी जब पलकें उठे तो हो ग़र ज़रा भी परवाह तो ग़ौर करना बादल, बयार मिलेंगे, बिखरे पंख पर इजाज़त नहीं उड़ान को रोक लगी टोक लगी, दहलीज़ तक ही सीमित मुझे संसार मिला हँसी खिलखिलाहटें भी भूली,कोई पुचकार नहीं रूँधी आवाज़ को अपने साये से दूर जाएँ भी तो कितना, बस इन अँधेरों में ही राहत है दरकार नहीं रिहाई की, रहने दो मेरा हिस्सा इस सज़ा-ए-दवाम को उफनते सैलाब को बाहर ला नहीं सकतें, हर घाव अंदरूनी होता है क्या कहोगे देखकर मुझको? सिर्फ़ हूलिए से तौली मेरी पहचान को? ♥️ Challenge-984 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।