यादें... गाँव की... सतरंगी यादें... ले जाती हैं अतीत में कहीं गुदगुदाती हैं मन को भीतर कहीं वो खेलना-कूदना;दौड़ना-भागना बाग में झूले पर ज़ोर से पींग बढ़ाना कच्ची कैरी तोड़ माली को पीछे भगाना बैल पर सवार खुद को राजकुमार समझना वो कंडों के घरौंदों में छिपन-छिपाई खेलना बारिश के दिनों में गीली मिट्टी में लिपट-लिपटाना माँ की डाँट से बचने को बाबा के पीछे छिप जाना पूरे गाँव का एक बहुत बड़े घर-परिवार सा होना थक हार कर रात को चाचा-ताऊ के घर सो जाना खुले आकाश तले छत पर तारों को निहारना-गिनना आता है सबकुछ याद अचानक जीवन की व्यस्तता में सब सोच मन खुश हो लेता है कर सफर सतरंगी यादों में...! मुनेश शर्मा मेरी✍️🌈🌈🌈 सुप्रभात। सतरंगी यादों से भर जाती हैं आँखें कितने चेहरे मन के पर्दे पर लहराने लगते हैं। #सतरंगीयादें #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi