तू चंचल सी तू कोमल जैसे बहती है जल की धारा मैं रेगिस्तान में पेड़ के जैसा ढूंढता हूं तेरा किनारा तुम बिन जीवन गुरबत है मेरा कैसे बता मैं करूं गुज़ारा भ्टक रहा हूं कोई ग़म नहीं है पहले ही हूं गम का मारा एक प्यासा है कुआ खोजता लोग कहते हैं मुझे आवारा तुम तो हो एक हवा का झोंका किस से पूछूं पता तुम्हारा किस से पूछूं