अब तो चाह कर भी प्रेम पर कविताएं लिखते वक्त किसी गोरी सुंदर लड़की का ख्याल नहीं आता पहले तो लगा शायद मां के संघर्षों से उभरे उनके गेहूंए रंग इसकी वजह होंगे किंतु उनसे दूर वीराने में जाकर भी कलम ने घुटने टेक दिए मुझे उन काली बदसूरत और बेबस लड़कियों से सहानुभूति नहीं बल्कि क्रांति की बू आने लगी है लगता है जैसे किसी भी क्षण वो हथियारों से लैस होकर मांगेंगी अपने ऊपर हुए क्रूरतम अत्याचारों एवं नफरतों का हिसाब #धर्मेंद्र यादव# #Hope धर्मेन्द्र यदुवंशी