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अनजानी डगर का मुसाफिर हूं मैं पर मंजिल पर नजर रखता

अनजानी डगर का मुसाफिर हूं मैं पर मंजिल पर नजर रखता हूं।
रहता हूं मैं हमेशा गैरों के बीच पर सब अपनों की खबर रखता हूं।
रात का शौकीन हूं मैं पर खुद को सारे एबों से बचा के रखता हूं।
उड़ने का हुनर जानता हूं पर खुद के हौसलों में उड़ान रखता हूं।
जाने कौन, कहां व कब मिल जाए सरे राह चलते चलते इसलिए
हमेशा अपने दिल के दरवाजे और खिड़कियों को खुला रखता हूं। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार...📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-28 में स्वागत करता है..🙏🙏
*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।

💫 प्रतियोगिता ¥28:- रात का शौकीन हूँ
अनजानी डगर का मुसाफिर हूं मैं पर मंजिल पर नजर रखता हूं।
रहता हूं मैं हमेशा गैरों के बीच पर सब अपनों की खबर रखता हूं।
रात का शौकीन हूं मैं पर खुद को सारे एबों से बचा के रखता हूं।
उड़ने का हुनर जानता हूं पर खुद के हौसलों में उड़ान रखता हूं।
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