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मंज़िल की तलाश में घर का रास्ता खो गया, यह शहर कभी

मंज़िल की तलाश में
घर का रास्ता खो गया,
यह शहर कभी अपना था
आज पराया सा हो गया,
हम अपने ही घर में
मेहमान से नज़र आते हैं
जैसे पहले आते थे,
क्यों अब वैसे ना घर आते हैं? 

चलो इस बार घर चलते हैं
अपने सपनों कों छोड़
अपनों से मिलते हैं,
राह देखती हमारी
नज़रों से मिलते हैं,
घर की दहलीज़ नहीं
घर का आँगन बनते हैं,
चलो इस बार घर चलते हैं।।

©Pawan Shah
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