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हर छूते हाथ के साथ सहम जाती है वो, क्या उस दरिंदे

हर छूते हाथ के साथ सहम जाती है वो,
क्या उस दरिंदे की नज़र में मासूम नही थी।
दरिंदगी थी हैवानियत थी पर इंसानियत दूर थी,
कैसे कैसे नोचा बयान करना आसान नही था।
घर वाले इज़्ज़त का रक्षक समझते थे जिसको,
उसके लिए बिस्तर पर वो इंसान ही नहीं थी।
इस दर्द को झेलने से तो जान ले लेती खुदकी,
हिम्मत नही थी इतनी क्योंकि दिमाग नही था।
हर बार पीटा और दर्द दिया मना करने पे उसको,
बचपना था उसमें कोई ये शौक नही था।
समझाती भी तो कैसे समझाती किसी को ये सब,
क्या हो रहा था उसको कुछ खबर नही थी।
चार सालों तक इज़्ज़त उसकी तार तार होती रही,
दर्दो का पहाड़ था उसपर बस बचपना नही था।
 Rather than celebrating womens day, promise yourself u will respect them.
Stop all odds against them.
#yqbaba #yqhindi #yqdidi #yqquotes #dadhiwaalebaba #womensday #respect
हर छूते हाथ के साथ सहम जाती है वो,
क्या उस दरिंदे की नज़र में मासूम नही थी।
दरिंदगी थी हैवानियत थी पर इंसानियत दूर थी,
कैसे कैसे नोचा बयान करना आसान नही था।
घर वाले इज़्ज़त का रक्षक समझते थे जिसको,
उसके लिए बिस्तर पर वो इंसान ही नहीं थी।
इस दर्द को झेलने से तो जान ले लेती खुदकी,
हिम्मत नही थी इतनी क्योंकि दिमाग नही था।
हर बार पीटा और दर्द दिया मना करने पे उसको,
बचपना था उसमें कोई ये शौक नही था।
समझाती भी तो कैसे समझाती किसी को ये सब,
क्या हो रहा था उसको कुछ खबर नही थी।
चार सालों तक इज़्ज़त उसकी तार तार होती रही,
दर्दो का पहाड़ था उसपर बस बचपना नही था।
 Rather than celebrating womens day, promise yourself u will respect them.
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