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बारिस दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसला

बारिस
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

बादल भी शहर वालों से  कुछ नाराज से लगते है,
सुरज निकलने के बाद शायद यहाँ लोग जगते है।

कोई समझना ना चाहे यहाँ, सबके सब सलाहकार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

मतलब का शहर बना कर रख दिया शहरवासियों ने,
धरती से आसमाँ तक फैला दिया विष लालचियों ने।

मतलब और लालच की दलदल में फँसता पहरेदार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

सावन और भादो की हरियाली अब होने लगी है पुरानी,
छल-कपट से भरी प्राचीर, अश्रु भरी सुनाने लगी है कहानी।

धोखा देना और वचन तोड़ने वाला यहाँ समझदार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।।

जीवन जीने की विधा बनाती है, अलग इस शहर को,
नयन रखते व्यापारी के, ग्राहकों पर रहते हर पहर को।

आँखो वाले आँखो से ना देख पाएँ, छाया यहाँ अँधकार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।।  #rsmalwar 
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

बादल भी शहर वालों से  कुछ नाराज से लगते है,
सुरज निकलने के बाद शायद यहाँ लोग जगते है।

कोई समझना ना चाहे यहाँ, सबके सब सलाहकार है।
बारिस
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

बादल भी शहर वालों से  कुछ नाराज से लगते है,
सुरज निकलने के बाद शायद यहाँ लोग जगते है।

कोई समझना ना चाहे यहाँ, सबके सब सलाहकार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

मतलब का शहर बना कर रख दिया शहरवासियों ने,
धरती से आसमाँ तक फैला दिया विष लालचियों ने।

मतलब और लालच की दलदल में फँसता पहरेदार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

सावन और भादो की हरियाली अब होने लगी है पुरानी,
छल-कपट से भरी प्राचीर, अश्रु भरी सुनाने लगी है कहानी।

धोखा देना और वचन तोड़ने वाला यहाँ समझदार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।।

जीवन जीने की विधा बनाती है, अलग इस शहर को,
नयन रखते व्यापारी के, ग्राहकों पर रहते हर पहर को।

आँखो वाले आँखो से ना देख पाएँ, छाया यहाँ अँधकार है।
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।।  #rsmalwar 
दो बूंद क्या गिरी इस शहर में, लोग समझे मुसलाधार है।
बादलों को लगा कि यहाँ तो सब पर छाया अहंकार है।। 

बादल भी शहर वालों से  कुछ नाराज से लगते है,
सुरज निकलने के बाद शायद यहाँ लोग जगते है।

कोई समझना ना चाहे यहाँ, सबके सब सलाहकार है।
rsmeena3946

R.S. Meena

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