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शायद फिरसे निकलना पडेगा खुद की तलाश में.. गहरी काल

शायद फिरसे निकलना पडेगा खुद की तलाश में..
गहरी काली रात में रोशनी की तलाश में...

तकलीफ दर्द पीडा तो सह रहा हुं...
दामन पे लगे दाग धोने की कोशीश कर रहा हुं...
संभलते संभलते गिर रहा हुं...
हर बार बस हार रहा हुं...

मौत की गुहार भी  नही लगा सकता...
अकेला भी चल नही सकता...
साथ ढुंढ रहा हु किसी का ....
मगर मुझे कोई समझ ले ऐसा तो कोई मिल भी नही सकता...

बेजान जिंदगी में खुशीयों के रंग ढुढंते ढुंढते थक गया हुं...
कोई बस मुझे  थोडासा तो समझ ले इसी तलाश में मुरझा रहा हुं....
कोई ऐसा मिले तो सही इसी तलाश में 
मौत के आगोश में धीरे धीरे चल रहा हुं...

बहोत मिले इस दुनिया में अपना कोई ना था..
लाखों की भीड में आज तक अकेला ही था...
सजदा करु तो किसी से करु...
समझे मुझे ऐसा कोई ना था....

©Abhi's Deshmukh
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